140 साल पहले यूरोपियन समूह का स्थापित

 


कानपुर। 2020 वर्ष गुजर रहा है और कोरोना से जूझते शहर ने इस दरमियान बहुत सी नई चुनौतियों का सामना किया और लोगों ने आपदा में अवसर को भी तलाशा। कोरोना में ठप से हो गए बिजनेस को नए आइडिया ने आगे बढ़ाया लेकिन इस वर्ष शहर के लिए एक खास बात यह भी रही कि शहर के लिए 140 वर्ष पुराना इलाहाबाद बैंक इस वर्ष खत्म हो गया।

कानपुर शहर में 1880 में इस बैंक की शुरुआत हुई थी। बैंक कर्मियों का कोई भी आंदोलन हो, शहर में हड़ताल के एक दिन पहले बड़ा चौराहा स्थित इलाहाबाद बैंक हमेशा बैंक कर्मियों के उस जुलूस का साक्षी बना जिसमें बैंक कर्मी अपनी शक्ति दिखाते थे। इस वर्ष इलाहाबाद बैंक खत्म हो गया, अब कुछ बोर्ड पर उसका नाम जो दिखता है वह इंडियन बैंक के साथ, ताकि ग्राहकों को कोई भ्रम ना हो कि इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हो चुका है।

 यूरोपियन लोगों के एक समूह ने इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में इलाहाबाद बैंक की स्थापना की। कानपुर में इस बैंक को आते-आते 15 वर्ष लग गए। वर्ष 1880 में कानपुर में रिजर्व बैंक के सामने राजा वर्दमान की कोठी में इलाहाबाद बैंक की शुरुआत की गई थी। कानपुर अंग्रेजों के लिए बहुत महत्वपूर्ण शहर था।

वीं शताब्दी के अंत तक इलाहाबाद बैंक देश में सिर्फ आठ स्थानों पर था और उसमें से एक कानपुर था। ये आठ स्थान इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, झांसी, बरेली, नैनीताल, दिल्ली, कोलकाता थे। कानपुर में अपनी शुरुआत के 22 वर्ष बाद इलाहाबाद बैंक 1902 में बड़ा चौराहा स्थित उस भवन में आ गया जहां वह इस वर्ष 31 मार्च तक अस्तित्व में रहा।

बड़ा चौराहा स्थित इलाहाबाद बैंक एक एेसी जगह था जहां पूरे शहर से लोगों को आने की सुविधा थी। इसके चलते बैंक कर्मियों के सबसे ज्यादा धरने, प्रदर्शन, जुलूस यहीं पर होने लगे। यहां से फूलबाग मैदान में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा तक बैंक कर्मियों के जुलूस निकलने लगे। किसी बैंक हड़ताल से पहले यहां से जुलूस जरूर निकलता था।

आखिर 140 वर्ष की यात्रा कर कानपुर में इलाहाबाद बैंक खत्म हो गया। लोग तो इस स्थान को अब भी इलाहाबाद बैंक के रूप में जानते हैं लेकिन यह वास्तव में अब इंडियन बैंक हैं और इंडियन बैंक के अधिकारी और कर्मचारी भी अब इंडियन बैंक का हिस्सा हैं।