किसानों का प्रदर्शन 21वें दिन भी जारी बंद किया चिल्ला बॉर्डर



कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन 21वें दिन भी जारी है। किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सरकार कुछ संशोधन पर अडिग है तो किसान कृषि कानूनों को वापस कराने की मांग पर अड़े हैं। अब किसानों को सरकार को लिखित जवाब दे दिया है कि उन्हें सरकार का संशोधन का प्रस्ताव मंजूर नहीं है। वहीं, आज कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर हो रहे किसानों के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। दायर याचिका में कहा गया है कि धरना-प्रदर्शन से आम लोगों को भारी परेशानी हो रही है। किसानों ने आज चिल्ला बॉर्डर जाम कर दिया है।

इसके बाद वकील राहुल मेहरा ने कहा कि किसान कड़कती ठंड में हैं। वो यहां मजबूरी के चलते हैं। यह इच्छा से नहीं किया गया है। तब एसजी बोले कि ऐसा लगता है आप किसी किसान संगठन की तरफ से पेश हुए हैं। तब अधिवक्ता मेहरा बोले मैं भी कह सकता हूं कि आप किसी और चीज के लिए उपस्थित हुए हैं। बाद में अदालत ने एसजी को बताया कि कोर्ट तुरंत एक कमेटी बनाएगी जिसमें पूरे देश के किसान संगठनों के किसान होंगे। नहीं तो ये जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा। ऐसा लगता है कि सरकार नहीं संभाल पाएगी। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र, पंजाब और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर कल तक जवाब मांगा है।

सीजेआई ने कहा कि वो कौन से पक्ष हैं जो प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं? एसजी ने बताया भारतीय किसान यूनियन। सरकार किसानों के हित के विरुद्ध कोई काम नहीं करेगी। पहले किसान सरकार के साथ बैठें और हर धारा पर चर्चा करें, तब जाकर खुले मन से कोई चर्चा या वाद-विवाद संभव है। इस पर सीजेआई ने कहा कि आपकी बातचीत ने काम नहीं किया। आपको बातचीच की इच्छाशक्ति दिखानी होगी और हमारे सामने किसान को लाना होगा जो बातचीत के लिए राजी हो। हमें यूनियन का नाम दीजिए। एसजी बोले कि मैं आपको दस मिनट में नाम दे सकता हूं, अभी मुझे भारतीय किसान का नाम याद आ रहा है।

तमाम दलीलों को सुनने के बाद सीजेआई ने एसजी से कहा कि हम देख रहे हैं कि सभी याचिकाएं अजीब हैं और हमारे सामने कोई वैधानिक मुद्दा नहीं रखा गया है। हमारे सामने जिसने रोड ब्लॉक किया है उसमें सिर्फ आप हैं मिस्टर एसजी। इस पर एसजी ने कहा कि मैंने रोड ब्लॉक नहीं की है। इस पर सीजेआई ने कहा कि नहीं, नहीं, नहीं। किसने रोड ब्लॉक की है? तब एसजी ने जवाब दिया किसान आंदोलन कर रहे हैं और सड़क दिल्ली पुलिस ने ब्लॉक की है। तब सीजेआई बोले कि असल में कोई रोड ब्लॉक करने वाला है तो वो आप हैं।

इस पर वकील रीपक कंसल ने कहा कि संतुलन होना चाहिए। मुक्त आवागमन नहीं हो पा रहा, एंबुलेंस नहीं जा पा रही। यह अनुच्छेद 19(1),(a)(b) और (c) का उल्लंघन है। इसके बाद वकील जीएस मणि ने अदालत में कहा कि उनके पास तमिलनाडु में भूमि है और वह किसानों की तकलीफ समझते हैं क्योंकि वह जब वहां जाते हैं तो खेती करते हैं। मुझे नहीं पता कि यह सरकार की गलती है कि किसानों की। इस पर सीजेआई ने उन्हें लगभग डांटते हुए कहा कि क्या आप चुप रहेंगे और सुनेंगे? आप कहते हैं कि आप पंजाब और हरियाणा के किसानों का दर्द समझ सकते हैं क्योंकि आपके पास तमिलनाडु में भूमि है? आप क्या जानते हैं? तब मणि ने कहा कि वह कड़ाके की ठंड में प्रदर्शन करने का दर्द जानते हैं।

सके बाद वकील रीपक कंसल के पेश होने पर सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या संगठनों को जोड़ा गया है। इस पर अधिवक्ता परिहार ने कहा कि उनके शामिल होने की जानकारी नहीं है। तब सीजेआई बोले अखबारों की रिपोर्ट देखिए संस्थाएं मौजूद हैं। इस पर परिहार ने कहा कि हम ऐसा करेंगे तो अदालत कहेगी कि हम अखबारों की रिपोर्ट चल रहे हैं और हमारी याचिका खारिज कर देगी। तब सीजेआई ने कहा कि आपको अदालत को मदद करनी चाहिए। बेवजह हमसे बहस मत करिए। 



चिल्ला बॉर्डर पर 15 दिन से ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे भारतीय किसान यूनियन (भानु) के किसानों ने आज चिल्ला बॉर्डर को पूरी तरह से दिल्ली जाने के लिए बंद कर दिया है। दरअसल चिल्ला बॉर्डर पर दिल्ली जाने वाली चार में से दो लेन खुली थी लेकिन आज किसानों ने उन दो लेन को भी बंद कर प्रदर्शन शुरू कर दिया  है।

सरकार ने जब से किसानों को लिखित प्रस्ताव भेजा था उसके बाद से ही सरकार यह कह रही थी कि किसानों ने उनका जवाब नहीं दिया है। इसी के चलते आज संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रोफेसर दर्शन पाल ने कृषि मंत्री को प्रस्ताव का जवाब लिखित में दिया है। इसमें उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार का प्रस्ताव नामंजूर है। इस पत्र में लिखा है, 'आपसे प्राप्त किए गए प्रस्ताव और पत्र के संदर्भ में आपके माध्यम से सरकार को सूचित करना चाहते हैं कि किसान संगठनों ने उसी दिन एक संयुक्त बैठक की और आपकी तरफ से दिए गए प्रस्ताव पर चर्चा की और इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि 5 दिसंबर 2020 को सरकारी प्रतिनिधियों द्वारा मौखिक प्रस्ताव का ही लिखित प्रारूप था। हम अपनी मूल बातें पहले ही विभिन्न दौर की बातचीत में मौखिक तौर पर रख चुके थे, इसीलिए, लिखित जवाब नहीं दिया। हम चाहते हैं कि सरकार किसान आंदोलन को बदनाम करना बंद करे और दूसरे किसान संगठनों से समानांतर वार्ता बंद करे।'

किसान कानूनों के विरोध के लिए यूपी की अलग-अलग जगहों से आए पूर्व सैनिक गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे। पूर्व सैनिक संगठन से सूबेदार रहे जे.पी. मिश्रा ने बताया कि ओडिशा से भी और लोग आज आ रहे हैं। साढ़े 10 बजे तक लगभग 200 लोग आ जाएंगे। किसानों के साथ अब संत और सैनिक समाज दोनों खड़े हैं।