कानपुर। बिधनू में खनन माफिया ने आम के आम, गुठलियों के दाम की कहावत सार्थक करते हुए अवैध कमाई का नया तरीका ढूंढ़ निकाला है। माफिया बिधनू क्षेत्र में राजस्व विभाग, पुलिस और क्षेत्रीय नेताओं से गठजोड़ करके ग्राम समाज, चारागाह और वन विभाग के साथ किसान की जमीन पर अवैध खनन करके तालाब बना देते हैं, फिर उसमें पानी भरकर मछली पालन कराते हैं। इससे जांच प्रक्रिया बाधित रहती है और मछलियों की कमाई से किसान को तय भुगतान भी कर दिया जाता है।
बिधनू के पिपरगवां गांव में खाता संख्या 1204 चारागाह के लिए अंकित जमीन पर वन विभाग के बबूल के पेड़ काटकर खनन माफिया ने गहरे तालाब बना दिए। रातों-रात इसमें पानी भी भरा दिया गया और हजारों रुपये की मछली डालकर कुछ लोगों को तैनात कर दिया। जो हर रोज मछलियों को चारा देने के साथ उनका पालन कर रहे हैं। आसपास के कई गांवों में भी यही खेल चल रहा है। मिट्टी निकालने के लिए किसान से लेते हैं एक वर्ष का वक्त खनन माफिया मिट्टी के साथ मछली पालन करने के लिए किसान से एक वर्ष का वक्त मांगते हैं। इसके बाद माफिया मात्र एक माह में पांच बीघा जमीन की मिट्टी एक दर्जन डंफर और चार जेसीबी लगाकर निकाल देते हैं।
किसान को जमीन समतल करने की बात कहकर बने गहरे तालाब में पानी भरा देते हैं और मछली पालन शुरू कर देते हैं। 9 माह में तैयार मछलियों को बाजार में बेचते हैं और जो उससे आय होती है उससे किसानों को मिट्टी का भुगतान कर दिया जाता है। पानी भरा देख खनन की रिपोर्ट लगती है शून्य खनन के बाद बने गहरे तालाबों में रातों-रात पानी भरने से मौके पर पहुंचे राजस्व अधिकारियों को नापजोख में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से राजस्व अधिकारी खनन की रिपोर्ट शून्य दिखा देते हैं।
वर्ष जनवरी 2017 में वन विभाग ने पिपरगवां की चारागाह की जमीन पर बबूल के पौधे लगवाए थे। जनवरी 2010 में पेड़ समेत जमीन को फिर से ग्राम पंचायत को वापस कर दिया था। अब इसकी देखरेख की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की है।
लेखपाल और राजस्व निरीक्षक के साथ खनन इंस्पेक्टर को भेजकर जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी।