गोरखपुर में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाती है। यह धार्मिक रूप से बहुत पवित्र त्यौहार है। इस दिन सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण होना अति शुभ माना जाता है। इस दिन स्नान, दान-पुण्य तो किया ही जाता है। साथ ही इस दिन विशेष रूप से खिचड़ी भी खाई जाती है
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान और खाने की परंपरा के पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है। गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी ने इसके पीछे की एक दिलचस्प बात बताई। उन्होंने बताया कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे।
इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।
गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है। एक महीने तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है। खिचड़ी दान और भोजन के पीछे एक दूसरा कारण यह है कि संक्रांति के समय नया चावल तैयार हो जाता है। माना जाता है कि सूर्य देव ही सभी अन्न को पकाते हैं और उन्हें पोषित करते हैं इसलिए आभार व्यक्त करने के लिए लोग सूर्य देव को गुड़ से बनी खीर या खिचड़ी अर्पित करते हैं।