बैनामों की जिल्द बही से पेज फाड़े गए। उनकी जगह डुप्लीकेट पेज लगाए। सरकारी रिकार्ड से घटवासन का मूल नक्शा ही गायब हो गया। जांच के दौरान सजरा नक्शा व राजस्व अभिलेखों के रखरखाव में गंभीर लापरवाही सामने आई है। इस मामले में एडीएम प्रशासन ने किसी गहरे षड्यंत्र की आशंका जाहिर करते हुए जिलाधिकारी से एक अलग विस्तृत जांच कराने की मांग की है।
जोंस मिल की जांच रिपोर्ट दो सप्ताह में एडीएम प्रशासन निधि श्रीवास्तव को पूरी करनी थी, लेकिन जांच में पांच महीने लग गए। इसकी वजह रिपोर्ट में उजागर करते हुए जांच समिति अध्यक्ष ने डीएम को बताया कि पहली बार घटवासन का बंदोबस्त फसली 1331 (सन 1952) में हुआ था। इसलिए 1331 फसली को आधार बनाकर जांच की गई। परंतु जांच के दौरान क्षेत्रीय लेखपाल सजल कुमार ने सजरा प्रस्तुत नहीं किया। राजस्व अभिलेखागार, आंग्ला अभिलेखागार, तहसील स्तरीय भूलेखागार, क्षेत्रीय अभिलेखागार में बंदोबस्त का नक्शा नहीं मिला। इस संबंध में तत्कालीन एसडीएम गरिमा सिंह ने भी नक्शा मौजूद नहीं होने की आख्या भेजी।
एडीएम प्रशासन ने राजस्व परिषद व राजकीय प्रिंटिंग प्रेस से नक्शा मंगाने के लिए राजस्व निरीक्षक को प्रयागराज भेजा तो वहां भी नक्शा उपलब्ध नहीं था। कहीं नक्शा नहीं मिलने पर चकबंदी विभाग के ड्राफ्टमैन को बुलाकर फसली 1285 के आधार पर फसली 1331 का डुप्लीकेट नक्शा ट्रेस किया गया। चकबंदी से प्रमाणित कराने के बाद इसके आधार पर जोंस मिल के खसरों की जांच व सर्वे किया गया है।
जांच के दौरान अपर जिला शासकीय अधिवक्ता सिविल द्वारा उपलब्ध कराई सूचना से संबंधित अभिलेखों की खोज के दौरान जांच टीम के सामने हैरान करने वाली सच्चाई आई। जिला निबंधक की जिल्द बही संख्या 50 में पेज नंबर 309, 310, 312, 381, 382, 383 और 387 से 394 तक मूल पेज गायब हैं। इनकी जगह इनसे मिलते जुलते दूसरे पेज चस्पा किए गए हैं। रिकार्ड से छेड़छाड़ मिलने पर जांच टीम ने किसी षड्यंत्र की आशंका जताई है।
जांच रिपोर्ट का परीक्षण किया है। भूमाफिया के खिलाफ कार्रवाई दो सप्ताह में शुरू हो जाएगी। नक्शा व रिकार्ड को दुरुस्त कराने के लिए राजस्व परिषद को प्रस्ताव भेजा जाएगा।
जोंस मिल की जांच में लोगों को भूमाफिया बनाए जाने पर गंभीरमल पांडया प्रा.लि. ने मंगलवार को अपना पक्ष रखा। निदेशक ने डीएम को पत्र भेजा है। इसमें कहा है कि जिस 1949 के नोटिफिकेशन को आधार बनाकर प्रशासन कार्रवाई कर रहा है उसे उच्च न्यायालय ने 1955 में खारिज कर दिया। इसके अलावा कोर्ट ने जो जमीन दी उसकी स्टांप ड्यूटी भी पूरी जमा की गई है। इसके अलावा पांडया पक्ष ने उनके खसरा 2084 व 2087 में खरीद-फरोख्त पर लगी रोक हटाने की मांग डीएम से की है। इनके अधिवक्ता एनके गुप्ता ने भी प्रशासन के समक्ष संपत्तियों के संबंध में कई पक्ष रखे हैं।