रोटी केवल पेट की नहीं, गणितीय ज्ञान की भी भूख मिटा सकती है। वृत, अर्ध वृत, व्यास, त्रिज्या, क्षेत्रफल इनका सबका गणित रोटी में छिपा है। इसी तरह कपड़ा मीटर, सेंटीमीटर, इंच तो मकान एक्स, वाई और जेड एक्सिस बखूबी समझा सकता हैं। वजह यह कि सुनने की अपेक्षा देखकर कुछ भी समझना आसान रहता है। इसी आधार पर आइआइटी के पुरातन छात्रों की तकनीक से स्कूलों में बच्चों को रोटी-पराठा, कपड़ा या मकान ही नहीं, खेत, झूला, चकला-बेलन, घर से स्कूल की दूरी, साइकिल की तीली के सहारे भी खेल-खेल में गणित सिखाई जा रही है।
पढ़े भारत-बढ़े भारत और राष्ट्रीय अविष्कार अभियान के अंतर्गत पढ़ाई का यह क्रम कानपुर, कानपुर देहात, आंबेडकरनगर,औरैया के सरकारी स्कूलों में जारी है। छात्रों के तीन अलग-अलग ग्रुप बनाए गए हैं। पहला कक्षा एक से पांच, दूसरा कक्षा पांच से आठ, तीसरा कक्षा नौ से 12 है। सबसे अधिक फोकस कक्षा पांच से आठ तक के छात्रों पर है। बड़े छात्रों को गणितीय मॉडङ्क्षलग के टिप्स दिए जा रहे हैं ताकि बड़ी से बड़ी गणना कर सकें। छोटे बच्चों के लिए कई तरह के मॉडल बनाए गए हैं, जिसमें त्रिकोणमिति, पाइथागोरस प्रमेय, बीजगणित आदि के सूत्र शामिल हैं।
राष्ट्रीय आविष्कार अभियान के नेशनल प्रोग्राम एडवाइजर अवनीश त्रिपाठी के मुताबिक ये पढ़ाई कानपुर, कानपुर देहात, आंबेडकरनगर, औरैया, दिल्ली, ओडिशा, उत्तराखंड, असोम आदि के स्कूलों में शुरू हो गई है। कानपुर में 25 और दिल्ली के 131 स्कूलों में प्रशिक्षण जारी है। इसमें आइआइटी के फैकल्टी, पुरातन छात्र, एनसीआरटी के विशेषज्ञ मिलकर काम कर रहे हैं। शिक्षकों को पहले प्रशिक्षण दिया जाता है। आइआइटी कानपुर के प्रो. अमर करकरे, पूर्व प्रो. एचसी वर्मा, आइआइटी गुवाहाटी के प्रो. हर्ष चतुर्वेदी जुड़े हैं। पुरातन छात्रों की संस्था यूनीसेड भी सहयोग कर रही है।