सदगुरु कबीर की निर्वाण स्थली मगहर पहुंच कर देश के कई चर्चित हस्तियां शीश झुका चुकी हैं। यहां कबीर की समाधि और मजार दोनों हैं
मुतवल्ली खादिम हुसैन बताते हैं कि सदगुरु कबीर के दर्शन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ चुके हैं। इनके अलावा पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, पूर्व राज्यपाल बी गोपाल रेड्डी, पूर्व राज्यपाल अकबर अली, पूर्व राज्यपाल गणपत देव तपासय, पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी, पूर्व राज्यपाल मोतीलाल बोरा, पूर्व राज्यपाल बी सत्यनारायण रेड्डी, पूर्व राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री जैसी तमाम विभूतियां यहां पहुंचकर कबीर दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त कर चुकी हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक सूफी संत कबीर की निर्वाण स्थली मगहर में स्थित है। 27 एकड़ में फैले कबीर चौरा परिसर में सूफी संत कबीर की एक तरफ जहां मजार है, वहीं दूसरी तरफ कबीर की समाधि स्थित है। यह स्थान सभी धर्मों के लोगों के आस्था का केंद्र बना हुआ है।
यहां देश ही नहीं विश्व के तमाम देशों से कबीर के अनुयायी आकर मत्था टेकते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। उनकी कही हुई एक-एक वाणी आज भी प्रासंगिक हैं। महंत विचारदास ने बताया कि सदगुरु कबीर की 621वीं जयंती अगले माह में मनाई जाएगी। सदगुरु कबीर कई बार मगहर आए थे, लेकिन अंतिम रूप से सन् 1515 में नवाब बिजली खान पठान के आग्रह पर मगहर आए और यहीं अपनी तपोभूमि बनाई।
यहीं पर दो वर्ष बाद सन् 1518 में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सदगुरु कबीर में हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों की आस्था थी। इसलिए एक तरफ मजार तो दूसरी तरफ समाधि बनाई गई, जहां समाधि है, वहां झोपड़ी थी। सन् 1518 में उनके निर्वाण के बाद प्राप्त अवशेष फूल व चादर से रीवा के राजा वीर सिंह बघेल, कबीर साहब के प्रधान शिष्य आचार्य श्रुति गोपाल साहब ने कबीर की समाधि का निर्माण कराया। 18वें आचार्य महंत श्रीगुरुप्रसाद साहब ने परिक्रमा, पूजा स्थल व चबूतरे का 1898 में जीणोद्धार कराया, जबकि बिजली खान पठान के भतीजे फिदाई खान ने मकबरे का निर्माण कराया था।
मुतवल्ली खादिम हुसैन ने बताया कि एक बार इस इलाके में अकाल पड़ा हुआ था। उस समय नवाब बिजली शाह के आग्रह पर बनारस से कबीर मगहर आए। यहां आकर दुआ की तो पूरा इलाका हराभरा हो गया। उनकी मृत्यु के बाद यहीं मजार बनाई गई।
कबीर चौरा परिसर में बने कबीर गुफा की 1957 से देखभाल कर रहे सुखराम दास चेला नारायण दास ने बताया कि यह पहले खपरैल था। इसके अंदर बनी गुफा में सदगुरु साहब एकांत में बैठकर ध्यान किया करते थे। पहले अंदर जाने और आने का एक ही रास्ता हुआ करता था, लेकिन जब दर्शन करने वालों की भीड़ लगने लगी तो जाने का रास्ता अलग और बाहर आने का रास्ता अलग कर दिया गया।
सदगुरु कबीर की निर्वाण स्थली कबीर चौरा परिसर में कबीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वर्ष 1987 से प्रत्येक वर्ष 12 से 18 जनवरी तक मगहर महोत्सव का आयोजन होता है। जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, विभिन्न प्रकार के झूले व सरकारी प्रदर्शनियां आकर्षक का केंद्र हुआ करती हैं। वहीं कबीर के दर्शन का भी लोगों को सौभाग्य प्राप्त होता है।