देश भर में चर्चित बेहमई कांड के वादी व गवाह कई बार बयान बदल चुके हैं। ऐसे ही घटनाक्रम फैसले में देरी की वजह बनते रहे। वर्ष 2013 में वादी ने एक आरोपी के घटना में शामिल होने से इनकार किया था। जबकि घटना के बाद जेल में शिनाख्त परेड के दौरान बतौर उसकी आरोपी पहचान की थी।
वहीं, दोबारा गवाही में वादी ने कुछ याद न होने की बात कही थी।14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने अपने साथियों संग धावा बोल दिया था। डकैतों ने 26 पुरुषों को गांव के बाहर लाइन में खड़ाकर अंधाधुंध फायरिंग की थी।
इसमें 20 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि छह गंभीर रूप से घायल हो गए थे। घटना की रिपोर्ट गांव के राजाराम सिंह ने दर्ज कराई थी। घटना में राजाराम सिंह के दो सगे, एक चचेरे भाई व तीन भतीजे मारे गए थे। इस मामले लंबे समय तक गवाही नहीं हुई।
छह फरवरी 2013 को कानपुर में एडीजे एमए खान की अदालत में बयान के दौरान वादी राजाराम सिंह ने आरोपी विश्वनाथ उर्फ पुतानी को घटना शामिल न होने की बात कही थी। जबकि, घटना के बाद जिला कारागार कानपुर में शिनाख्त परेड के दौरान राजाराम ने विश्वनाथ को आरोपी बताते हुए पहचाना था।
इस पर तत्कालीन एडीजीसी राजू पोरवाल ने जेल से दस्तावेज तलब किए थे। लेकिन जेल में दस्तावेज न मिलने से वादी राजाराम व गवाह वकील सिंह की दोबारा गवाही कराई थी। उसमें वादी ने विश्वनाथ के पहचानने के बाबत कहा था कि उन्हें याद नहीं है। इस कारण सुनवाई की प्रक्रिया लंबी चलती रही। अंत में मामला मूल केस
देश भर में चर्चित बेहमई कांड के वादी व गवाह कई बार बयान बदल चुके हैं। ऐसे ही घटनाक्रम फैसले में देरी की वजह बनते रहे। वर्ष 2013 में वादी ने एक आरोपी के घटना में शामिल होने से इनकार किया था। जबकि घटना के बाद जेल में शिनाख्त परेड के दौरान बतौर उसकी आरोपी पहचान की थी।
वहीं, दोबारा गवाही में वादी ने कुछ याद न होने की बात कही थी।14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने अपने साथियों संग धावा बोल दिया था। डकैतों ने 26 पुरुषों को गांव के बाहर लाइन में खड़ाकर अंधाधुंध फायरिंग की थी।
इसमें 20 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि छह गंभीर रूप से घायल हो गए थे। घटना की रिपोर्ट गांव के राजाराम सिंह ने दर्ज कराई थी। घटना में राजाराम सिंह के दो सगे, एक चचेरे भाई व तीन भतीजे मारे गए थे। इस मामले लंबे समय तक गवाही नहीं हुई।
छह फरवरी 2013 को कानपुर में एडीजे एमए खान की अदालत में बयान के दौरान वादी राजाराम सिंह ने आरोपी विश्वनाथ उर्फ पुतानी को घटना शामिल न होने की बात कही थी। जबकि, घटना के बाद जिला कारागार कानपुर में शिनाख्त परेड के दौरान राजाराम ने विश्वनाथ को आरोपी बताते हुए पहचाना था।
इस पर तत्कालीन एडीजीसी राजू पोरवाल ने जेल से दस्तावेज तलब किए थे। लेकिन जेल में दस्तावेज न मिलने से वादी राजाराम व गवाह वकील सिंह की दोबारा गवाही कराई थी। उसमें वादी ने विश्वनाथ के पहचानने के बाबत कहा था कि उन्हें याद नहीं है। इस कारण सुनवाई की प्रक्रिया लंबी चलती रही। अंत में मामला मूल केसडायरी न होने पर लटक गया।
आरोपी विश्वनाथ उर्फ पुतानी के मामले में वादी राजाराम सिंह की दोबारा गवाही करानी पड़ी थी। वादी की मौत हो या फिर मूल केस डायरी पत्रावली में न मिलने का मामला हो, इससे अदालत के फैसले पर असर नहीं पड़ेगा। मामले में 24 दिसंबर को सुनवाई होनी है।