कोरोनावायरस की पहचान हुए एक साल होने वाला है। कुछ वैक्सीन भी आ चुकी हैं। वैक्सीन रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कई देशों की सरकारों, प्राईवेट सेक्टर और दूसरे संस्थानों ने टॉप फार्मा रिसर्च कंपनियों को खुले हाथों से दान दिया। आज दुनियाभर में करीब 30 वैक्सीन पर काम चल रहा है। फाइजर, मॉडर्ना, कोवीशील्ड और स्पूतनिक जैसी कुछ वैक्सीन तैयार हो चुकी हैं। ब्रिटेन और अमेरिका समेत कुछ देशों में वैक्सीनेशन शुरू भी हो चुका है। कुछ वैक्सीन के ट्रायल अंतिम दौर में हैं।
साइंटिफिक रिसर्च क्षेत्र में डेटा एनालिसिस करने वाली एजेंसियों के मुताबिक, वैक्सीन डेवलप करने के लिए फार्मा कंपनियों को अब तक 18.45 बिलियन पाउंड फंड दिया गया है। अब ये सवाल भी उठता है कि क्या वैक्सीन मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां मोटा मुनाफा भी हासिल करेंगी
कोरोना के महामारी के घोषित होने के बाद जल्द वैक्सीन की जरूरत थी। इसीलिए बड़ी फार्मा कंपनियों को कई जगह से फंड मिलना शुरू हुआ। डेटा रिसर्च एजेंसी ने वैक्सीन के लिए दिए गए फंड को 4 हिस्सों में बांटा।
- फार्मा कंपनियों द्वारा बनाया गया फंड
- कई देशों की सरकारों द्वारा दिया गया फंड
- प्राईवेट इन्वेस्टर्स ने मुनाफा हासिल करने के लिए पैसा लगाया
- मानवहित में काम करने वाली संस्थाओं द्वारा दिया गया फंड, ताकि वैक्सीन गरीब लोगों तक मुफ्त में पहुंच सके।
फिलहाल, कुल 18.45 बिलियन पाउंड 30 वैक्सीन के रिसर्च एंड डेवलपमेंट में खर्च किए जा रहे हैं। सोशल सेक्टर और चैरिटी की बात करें तो बिल गेट्स फाउंडेशन और अलीबाबा के जैक मा ने भी काफी डोनेशन दिया है। सरकारों की बात करें तो अमेरिका ने सबसे ज्यादा फंड दिया है।
- वैक्सीन निर्माण में जो कंपनियां टॉप पर हैं, उनमें सबसे महंगी वैक्सीन मॉडर्ना की है। इसकी कीमत 1840 से 2730 रुपए के बीच है। मॉडर्ना बेस्ड वैक्सीन में काम करने वाली बड़ी कंपनी है। इस वैक्सीन को बहुत कम टेम्परेचर में रखने की जरूरत होती है, इसलिए कीमत भी ज्यादा है।
- सबसे कम कीमत कोवीशील्ड की है। एस्ट्राजेनिका और ऑक्सफोर्ड इंस्टीट्यूट के सहयोग से बन रही इस वैक्सीन के लिए एग्रीमेंट हुआ है कि ये शुरुआत में नो प्रॉफिट-नो लॉस के आधार पर ही बिकेगी। इसकी कीमत 300 रुपए से 600 रुपए के बीच है।
- महामारी के चलते कोवीशील्ड ने मिनिमम प्राइज पर वैक्सीन मुहैया कराने की कोशिश की है। यह तय है कि कोरोना कंट्रोल होने के बाद इस वैक्सीन की कीमत बढ़ेगी। माना जा रहा है कि फिलहाल, वैक्सीन कंपनियां कम मुनाफे में ही बिजनेस करेंगी। बाद में जरूरत के हिसाब से कीमत बढ़ाएंगी।
- फार्मासेक्टर में वैक्सीन रिसर्च और डेवलपमेंट को फायदे का सौदा नहीं माना जाता। इसका कारण यह है कि वैक्सीन के लिए रिसर्च, टेस्टिंग जैसे प्रोसेस में काफी वक्त लगता हैवैक्सीन कंपनियों पर विकासशील देशों के साथ गरीब देशों का भी ध्यान में रखने का दबाव होता है।ज्यादातर वैक्सीन सिंगल यूज होती हैं। एक बार लेने के बाद व्यक्ति को दोबारा उसकी जरूरत नहीं पड़ती। इसी के चलते कई कंपनियां तो वैक्सीन की बजाए नियमित रूप से ली जाने वाली दवाओं पर ज्यादा फोकस करती हैं।