आईआईटी कानपुर में जियोडेसी (भू गणित) का नया पाठ्यक्रम शुरू हो गया है। आईआईटी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. ओंकार दीक्षित, मेजर जनरल डॉ. बी नागराजन, प्रो. बालाजी देवराजु की देखरेख में नेशनल सेंटर फॉर जियोडेसी की स्थापना की गई है।
यह सेंटर शिक्षा और अनुसंधान गतिविधियों को समर्थन करने वाला देश का पहला केंद्र है। इसमें पृथ्वी को मापने वाले विशेषज्ञ तैयार किए जाएंगे। संस्थान में इस कोर्स के लिए बीओजी में अनुमति मिल गई है। इसमें सिविल इंजीनियरिंग विभाग के तीन क्षेत्र जियोडेसी, नेविगेशन, मैपिंग और रिमोट सेंसिंग के बारे में बताया जाएगा।
इस कोर्स में भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन और मौसम के खतरे, जलवायु परिवर्तन, मृदा स्वास्थ्य, जल संसाधन, सूखा निगरानी पर विशेषज्ञ काम करेंगे। संस्थान के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि जियोडेसी डिप्लोमा कोर्स के माध्यम से अनुसंधान में मदद मिलेगी।
प्रो. ओंकार दीक्षित ने कहा कि इस कोर्स में सिविल, कंप्यूटर साइंस, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक्स, भू-सूचना विज्ञान, गणित, भौतिकी, पृथ्वी विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, भूगोल के अलावा जियोइंफार्मेटिक्स के विषय विशेषज्ञ ही प्रतिभाग कर सकेंगे।
जियोडेसी में धरती पर उपलब्ध सभी प्राकृतिक संसाधनों की माप ली जाती है। मसलन कितने सागर, कितने पहाड़, धरती की गहराई, झील सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों की माप ली जाती है। इसके लिए सैटेलाइट, सेंसर, नेविगेशन की मदद ली जाती है। इसका उपयोग सभी समान मानचित्रों, एटलस और स्थलाकृतिक योजनाओं को बनाने और उपयोग करने में होता है। हवाई जहाज या एक हेलीकॉप्टर या उपग्रह से पृथ्वी की सतह की तस्वीरें खींचकर भू-संबंधी दस्तावेज (बनाने के तरीकों का अध्ययन करता है। इंजीनियरिंग उद्योग में इसका उपयोग सर्वाधिक है। क्योंकि इसके विशेषज्ञ जमीन पर किसी भी इंजीनियरिंग संरचनाओं के निर्माण की शुरुआत से पहले सर्वेक्षण करते हैं।