किसान आंदोलन की अंतर्कथाःकहां बिगड़ी बात

नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन की समाप्ति की राह फिलहाल दिखाई नहीं पड़ रही है। सरकार और आंदोलनकारी किसान नेताओं के बीच गतिरोध बरकरार है। किसानों के शिष्टमंडल को जब अनौपचारिक बातचीत के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने बुलाया, तो मंगल की उम्मीद जगी थी।



भारत बंद के बाद अब नौ दिसंबर इस आंदोलन के लिए अहम हो सकता है। बुधवार को आंदोलनकारी किसान नेताओं से सरकार की छठे दौर की औपचारिक बातचीत होनी थी जो टल गई है। लेकिन सरकार किसान संगठनों को अब तक की बातचीत के बाद नए सिरे से लिखित प्रस्ताव देगी।
बुधवार को ही मोदी कैबिनेट की बैठक है और इसी दिन विपक्षी दलों का शिष्टमंडल राष्ट्रपति से मिलने वाला है। सरकार के नरम रवैये के बाद भी किसान नेताओं के तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने पर अड़ने के कारण बुधवार की बातचीत पर ब्रेक लग गया। 


बैठक रही बेनतीजा
मंगलवार को गृह मंत्री अमित शाह के अलावा कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, वाणिज्य व रेल मंत्री पीयूष गोयल की 


किसान जत्थेबंदियों के 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ करीब दो घंटे मैराथन बैठक चली। बैठक से निकल कर क्रांतिकारी किसान यूनियन के डॉ. दर्शनपाल और भाकियू एकता डकौंदा के बूटा सिंह बुर्जगिल ने बताया कि अमित शाह के साथ अनौपचारिक बैठक बेनतीजा रही।


गृह मंत्री शाह ने किसान जत्थेबंदियों को कहा, तीन कानूनों की वापसी को छोड़कर बाकी मुद्दों पर पहले बात की जाए। कुछ मुद्दों पर हल पहले ही निकल चुका है। इस पर किसान नेताओं ने कहा, पहले भी कई मुद्दों पर कई दौर की बात हो चुकी है लेकिन अब तक सरकार की ओर से लिखित प्रस्ताव नहीं मिला है।


सूत्र बताते हैं कि शाह की तरफ से आश्वासन दिया गया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की लिखित गारंटी, पराली जलाने पर एक करोड़ जुर्माने को न्यूनतम करने, 2020 बिजली में आंशिक बदलाव समेत चार बड़ी आपत्तियों पर संशोधन को सहमत है, लेकिन किसान नेताओं का शिष्टमंडल अड़ा रहा कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं ले लिए जाते, तब तक वह नहीं मानेंगे। फिर बात यहीं अटक गई।
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